मानव सभ्यता जितनी पुरानी है लगभग उतना ही पुराना है- स्वाद का संसार । सभ्यता के विकास के साथ स्वाद की दुनिया बदलती चली गई । सहज सुलभ कलेवा होता हुआ खानपान का यह रुप आज नये दौर में है, षट्-रस तो वही हैं लेकिन जिनमें प्रपंच स्वाद से कम नहीं । मध्य भारत के पांच अहम् लोकांचल हैं, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड, निमाड़, मालवा और हमारा अपना छत्तीसगढ़ । अपनी-अपनी रस विशिष्टता के साथ । ऐसे में हमें याद आती हैं हमारी परंपराएं इस मामले में छत्तीसगढ़ संभवतः सबसे अनूठा है ।
अन्य राज्यो की तरह छत्तीसगढ़ में भी खान-पान की विशिष्ट और दुर्लभ परंपराएं है। आदिवासी समाज में प्रचलित 'वनोपज' से लेकर जनपदीय संस्कृति तक 'कलेवा' अपना रुप बदलता है.पारंपरिक व्यंजन सिर्फ उत्सव-त्यौहार में स्वाद बदलने का जरिया मात्र नही, वे हमें हमारी विरासत से भी परिचित कराते है। समय के साथ 'स्वाद का सहज संसार' भी बदलता गया है। आधुनिकहोते परिवेश में नई पीढ़ी के अपने सांस्कृतिक मूल्यों से परिचय कराना हमारे बस में है. निःसंदेह देश के दूसरे लोकांचलों के मुकाबले छत्तीसगढ़ स्वाद के मामले मे बेजोड़ है। यहाँ मागंलिक अथवा गैर मांगलिक दोनों अवसरों पर घरों में एक से एक व्यंजनों का चलन है। नमकीन, मीठे, व्यंजनों की इन श्रृंखला में भुने हुए, भाप में पकाए और तले प्रकार तो है, और इनसे अलग हटकर भी व्यंजन बनाने की रिवाज है। इन खाद्य पदार्थो में उन्ही वस्तुओं का इस्तेमाल होता है जिनकी जरुरत रोजमर्रा की रसोई में हम किया करते है। जैसे आटा, ज्वार, चना, तिल, जौ, चावल, चोकर, गुड़, गोंद आदि। ये मिठाईयाँ न तो किसी सांचे से ढ़लती है और न ओवन के गणितीय तापमान से इनका नाता है। चकमकी और रंगीन आभा वाली बाजारु मिठाईयाँ के सामने ये मिठाईयाँ खासी विनम्र और सादगी युक्त तो है, पौष्टिकता के मुकाबले मे भी इनका जवाब नही। ममत्व और श्रम सींच-सींच कर बनाई गई इन घरेलू मिठाईयों का एक मर्तबा स्वाद लीजिए ।
आइए नजर डालें छत्तीसगढ़ी स्वाद की इस झांपी में जहां फरा, पीठिया, छिटहा लाडू, मुठिया, चौंसेला, अइरसा, देहरौरी, चीला, सोंहारी, पपची, ठेठरी, खुरमी सहित और भी बहुत कुछ गुण-ग्राहकों की प्रतीक्षा में है ।
छत्तीसगढ़ी व्यंजन संतुलित, स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट होते हैं । साथ ही पारंपरिकता की सौंधी महक इनको बेजोड़ बनाती है । आधुनिकता के इस दौर में चूल्हा-चौके से निकले स्वाद के अपने और विनम्र संसार में उतरने का अवसर दे रहा है नाचा वाला खाइ-खजेना ।